मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017




 झील किनारे बैठी सुरती दूर उठते धुएं को निहार रही थी .यहाँ थर्मल की झील के सामने अपनी झुग्गी डाले उसे तीन साल हो गए है . यहाँ वह अपने छ बच्चों के साथ झाडू बना कर बेचती रही है .इससे पहले वह उसके जैसे लोग भट्टी रोड पर रहते थे .अचानक एक दिन उन्हें वहां से उजाड़ दिया गया .तो वे सब यहाँ आ गए . पहले तो बड़ी मुश्किल हुई .छोटे छोटे बच्चे अक्सर सडक के बीचोबीच आ जाते तो उसका कलेजा मुंह को आ जाता . अब बच्चे सडक पार करना सीख गए है बडकू तो झील से कभी कभी मछली भी पकड़ लाता है .पर कल फिर पुलिस वाले अपने साथ किसी साहब को लेके आये थे - चलो चलो कल सुबह तक सड़क खाली करो सडक चौड़ी होगी समझे . सुरती को कुछ समझ नहीं पद रहा . अब किधर जायेगी .जाना तो पड़ेगा  और कोई चारा ही नहीं है 

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