मीरकोट से खालापार जाते हुए शाहों की बङी सी हवेली ।हवेली क्या, महल और उस पर सीमेंट में खुदा शाह । पर सहारनपुर के लोगों के लिए वह हमेशा शाहनी केसर बाई की हवेली ही रही । करीब सौ साल पुरानी हवेली । पीतल के कोके और कील जडा बडा दरवाजा, दरवाजे के बाहर बने लाल वर्दी पहने और बन्दूक पकडे दो अँग्रेज़ चौकीदारों के आदमकद बुत उसे और भव्य बनाते थे ।
हवेली के भीतर ड्योढी बनी थी जिसके दोनो और चबूतरे बने थे जहाँ कभी बडे शाहजी अपने असामियो के साथ बैठक सजाते थे। और अंदर जाने पर आँगन के एक तरफ नौकरों के लिए आठ कमरे, दूसरी ओर ठाकुर जी का मंदिर और कुँआ ,बीचो बीच तुलसी जी । उसके बाद बड़ा सा आँगन पार करने पर चार सीढियाँ और । उन्हे चढ कर मुख्य इमारत । खुला बरामदा। । उसमें बिछा दीवान, धुली चादर और गाव तकिया लगाये बैठी शाहनी केसर देई जो अकसर किसी काम में व्यस्त दिखाई देती । पास बिछी चारपाइयों पर करजा लेने आए लोगों की भीड लगी रहती ।
शाहनी गोरी चिट्टी मानो रंग में केसर घुला हो। सफेद बाल इसी हवेली में सफेद हुए। जब शाहनी दुल्हन बन कर इस हवेली में आई तो दस साल की छोटी सी बच्ची थी। सास ससुर तो देख देख निहाल होते । तीन ही दिन रह केसर मायके लौट गई थी । पीछे छोड गई थी चूङियों और पायल की खनक तथा सूना आँगन । सास ने सूनापन भरने को तीसरा साल लगते ही गौना करा केसर को बुला लिया था । छमछम करती केसर बारह साल की उम्र में गृहस्थिन हो गई। पर उसने देखा उसका पति रमेसर हमेशा उससे बचने की कोशिश करता । शाहनी ने उस वक्त तो चैन की साँस ही ली थी आठ साल बङा ये पति कहीं उससे झगङा करने लगा तो वह अपने घर कैसे जाएगी।
हवेली के भीतर ड्योढी बनी थी जिसके दोनो और चबूतरे बने थे जहाँ कभी बडे शाहजी अपने असामियो के साथ बैठक सजाते थे। और अंदर जाने पर आँगन के एक तरफ नौकरों के लिए आठ कमरे, दूसरी ओर ठाकुर जी का मंदिर और कुँआ ,बीचो बीच तुलसी जी । उसके बाद बड़ा सा आँगन पार करने पर चार सीढियाँ और । उन्हे चढ कर मुख्य इमारत । खुला बरामदा। । उसमें बिछा दीवान, धुली चादर और गाव तकिया लगाये बैठी शाहनी केसर देई जो अकसर किसी काम में व्यस्त दिखाई देती । पास बिछी चारपाइयों पर करजा लेने आए लोगों की भीड लगी रहती ।
शाहनी गोरी चिट्टी मानो रंग में केसर घुला हो। सफेद बाल इसी हवेली में सफेद हुए। जब शाहनी दुल्हन बन कर इस हवेली में आई तो दस साल की छोटी सी बच्ची थी। सास ससुर तो देख देख निहाल होते । तीन ही दिन रह केसर मायके लौट गई थी । पीछे छोड गई थी चूङियों और पायल की खनक तथा सूना आँगन । सास ने सूनापन भरने को तीसरा साल लगते ही गौना करा केसर को बुला लिया था । छमछम करती केसर बारह साल की उम्र में गृहस्थिन हो गई। पर उसने देखा उसका पति रमेसर हमेशा उससे बचने की कोशिश करता । शाहनी ने उस वक्त तो चैन की साँस ही ली थी आठ साल बङा ये पति कहीं उससे झगङा करने लगा तो वह अपने घर कैसे जाएगी।