रविवार, 18 अगस्त 2019

झील गहरी


झील  गहरी

बठिन्डा शहर के बीचोबीच दूर दूर तक फैली झीलें । उन झीलों में बत्तखों जैसी तैरती रंग बिरंगी किश्तियाँ . सङक के आसपास रौनक ही रौनक । भागे जाते आटो , मोटरसाइकिल , कार , बस . शोर मचाते लोग . बच्चों की अलग चिलपों मची है ।  लाल लाल चूङा पहने पीला सालू ओढे आकांक्षा झील किनारे खङी बोट का आना जाना देख रही है । तरह तरह की किश्तियाँ हैं । छोटी - बङी मोटरबोट , शिकारे , पैडलबोट  सब मुरगाबियों की तरह पानी में हैं । कुछ तैर रही हैं , कुछ अभी रस्सी से बंधी हैं ।
युवती की आँखों में बच्चे जैसी चंचलता उतर आई  है ।  रिश्ते के मामा मामी को स्टेशन छोड़ने के बहाने वह आज आ पाई है घर से बाहर वरना पाँच महीने हो गए शादी को ,  कभी बाहर निकलने का मौका ही नहीं मिला । वापसी पर  उसने जिद की थी - मुझे झीले देखनी हैं । मुकेश बिना हीले हवाले के मान गया तो उसे हैरानी अधिक हुई थी ख़ुशी कम । वह किश्ती में बैठ सारा जल माप लेना चाहती है पर मुकेश है कि अपने मोबाईल की चैटिंग में मस्त है । आसपास क्या हो रहा है उसे कोई लेना देना ही नहीं है ।
  आकांक्षा ने अपना पर्स टटोला । उसमें अभी अभी मामी का दिया हजार का नोट सही सलामत पड़ा था । वह दो कदम चली । फिर इस उम्मीद से पलटी कि शायद मुकेश पूछने के बहाने ही कोई बात करे । मुकेश ने सिर उठा कर देखा पर फिर अपने मोबाईल में खो गया । उसने बोटिंग के लिए   दो टिकट ख़रीदे और लौट आई ।
   एक बोट पास आकर लगी । उस का मन किया कोई उसका हाथ पकड़ कर बोट पर चढ़ा ले पर ऐसा कुछ नहीं हुआ । आखिर वह खुद ही आगे बढ़ गई । मुकेश भी तब तक आ गया । अब वह अपने मोबाईल से अलग अलग एंगल से फोटो खींच रहा था । तैरती बोट , किनारे खङे लोग , बच्चे , लडकियाँ , औरतें ,खोमचे वाले ,पानी की लहरें सब कुछ कैमरे में कैद होता जा रहा था । दो तीन फोटो उसने अपनी बीबी के भी खींचे थे ।
  पूरा  लम्बा चक्कर लगाती बोट ने यू टर्न लिया और वापिस मुड़ पड़ी । युवती का चेहरा छिपते सूरज से होड़ लेता सिन्दूरी रंग का हो गया था । उसके दिल की धडकनें तेज हो गई थी । उसका मन किया मुकेश के हाथों से फोन छीन कर झील के गहरे पानियों में फेंक दें  पर सभ्यता का तकाजा नहीं था न । सो चुप रहना ही बेहतर ।
किश्ती किनारे लगी । युवती से रहा न गया । उसने पति से पूछा - आज तो बड़ा मजा आया । पति ने मुंह ऊपर उठाया  - हूँ । मोटर साइकिल स्टार्ट कर दी । युवती चुपचाप पीछे बैठ गई । झील पीछे छूट रही थी या शायद उसके साथ ही आ गई थी । आँखों में बस गयी थी ।