रानी हमारे घर अपनी शादी का कार्ड देने आई थी। मैंने उसे बधाई दी - एकदम सही फैसला किया तूने। सारी जिंदगी कोई अकेला कैसे रह सकता है। बिलकुल सही समय पर शादी कर रही हो " आपने ही मुझे शादी के लिए तैयार किया दीदी। वर्ना मैंने तो फैसला कर लिया था सारी जिंदगी ऐसे ही अकेले काटने का। आप आशीर्वाद देने जरूर आना। मैंने आने का पक्का वादा किया। वह चली गयी।
मैंने कार्ड उलट पलट कर देखा। दो दिन बाद की शादी थी। चलो रानी अपनी जिंदगी में सैटल हो जायेगी। सोच कर अच्छा लगा
रानी ने मेरे ऑफिस में दो साल पहले जॉइन किया था। यह पहली बार था जब कोई लड़की अकेली सर्विस जॉइन करने आई थी वरना हर लड़की के साथ माँ बाप या भाई आते। दफ्तर के माहौल के बारे में पूछ ताछ करते। रहने का इंतजाम करते। पूरी तसल्ली होने पर ही वापिस लौटते। और यह लड़की। इस तरह अकेली। उसकी आँखों में असुरक्षा और अनिश्चितता स्पष्ट दिख रही थी फिर भी निडर और निशशँक दिखने की पूरी कोशिश कर रही थी।
मैंने बाकी लोगों से उसका परिचय कराया। शर्मा जी ने उसे उसका काम और सीट दिखा दी। शाम को छुट्टी से पहले उसे कैबिन में बुला कर पूछा - कहाँ रहने का इंतजाम किया है ? वह अचकचा गयी। अभी तो सोचा नहीं ऑफिस के बाद स्टेशन जाकर सामान लाना है। अभी क्लॉक रूम में जमा है। फिर कोई अच्छा सा होटल ले लेगी। दो चार दिन में घर मिल जाएगा तो वहां शिफ्ट कर लेगी।" वह एक साँस में बोल गयी।" चलो मेरे साथ। " मैंने गाडी की चाबी और पर्स उठाते हुए कहा तो वह बिना कोई सवाल किये मेरे पीछे पीछे चल दी।
हमने स्टेशन से उसका सामान लिया। वह मेरे साथ मेरे घर आ गई। लेकिन न तो उसने कोई फोन किया न कोई फोन आया। रात के खाने की मेज पर उसने कहा - दीदी आप को परेशानी हुई। मैं तो होटल में भी रह जाती।
" पागल हुई हो. इस छोटे से शहर में ऐसा कोई ढंग का होटल नहीं है जहाँ जवान खूबसूरत लड़कियाँ अकेली जाकर रह सकें। " उसकी आँखों में नमी छलक आई थी जिसने उसे भीतर ही समा लिया -
" दीदी मैं तो इससे भी छोटे शहर में अकेली रहती हूँ। आज से नहीं , पिछले सात साल से। "
तुम्हारे घर में.... . "
" कहने को सब हैं पर मैंने ही घर छोड़ दिया। "
मैंने सांत्वना देने को कहा -" छोड़ो यह सब पहले खाना खाओ।" और वह चुपचाप कौर तोड़ने लगी थी। चार दिन में ही दीपक और अंकुर ने उसके लिए एक सुरक्षित छोटा सा घर ढूंढ दिया था। पर वह अक्सर छुट्टी वाले दिन मेरे बच्चों से मिलने चली आती।
एक दिन बातों बातों में उसने अपनी राम कहानी बताई।
जब वह मात्र अठारह साल की थी और बी ए में दाखिला लिया ही था कि उसकी मौसी ने अपने देवर के मन में रानी के लिए आकर्षण देख उसके रिश्ते की बात चलाई . देवेन्दर ने तब बी एस सी के दुसरे साल में दाखिला लिया था . एक सादे फंक्शन में दोनों की सगाई हो गई .सब ठीक चल रहा था . परिवारों ने फैसला लिया कि इस बैशाख में दोनों की शादी कर देंगे .अचानक देवेंदर का pmt में चयन हो गया और शादी टल गयी . लेकिन देवेंदर और रानी एक दुसरे को ख़त लिखते रहे .देवेंदर की चिट्ठियों में लम्बे लम्बे प्रणय निवेदन रहते .
समस्या तब हुई जब रानी से चार साल छोटी गुड्डी का भी एम् बी बी एस में दाखिला हो गया . देवेंदर ने फोन पर रानी को कहा -तुम कहो तो मै गुड्डी से शादी कर लूं .एक बार तो रानी सन्न रह गयी फिर उसे लगा देवेंदर मजाक कर रहा है . इतने साल का प्रेम ऐसे कैसे खत्म हो जाएगा .उसने हंसते हुए कहा -जाओ कर लो शादी .
देवेंदर की बहन और माँ अगले ही दिन गुड्डी का रिश्ता लेकर पहुँच गयी .हैरानी की बात यह कि रानी के घर वालों को भी दो डाक्टरों का रिश्ता सही लगा . एक ही हफ्ते में गुड्डी मिसेज देवेंदर हो गयी रानी ने घर छोड़ दिया .माँ ने उसे मनाने समझाने की कोशिश भी की पर बाकी किसी को कोई फर्क पड़ा हो ऐसा रानी को लगा नहीं . वह होस्टल में रह रही थी बी ए खत्म होते ही उसने एक ऑफिस में नौकरी कर ली और दोबारा घर गयी ही नहीं . अकेले अपने आप से और समाज से लड़ रही थी . मैंने उसे आशा वादी होने की सलाह दी .
आज दफ्तर के ही मनोज से उसने शादी कर घर बसाने का फैसला किया था .दोस्तों और रिश्तेदारों के नाम पर चंद दफ्तर के ही लोग इस कोर्ट मैरिज और पार्टी में शामिल हो रहे थे .मेरा जाना तो बनता ही था .
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